बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

अमेरिका के लिए लडता हमारा विश्वरुप


अफगानिस्तान के किसी इलाके में अलकायदा के आतंकियों ने अमरीकियों को बंधक बना रखा है। नाटो की फौज हवाई हमला करती है। जमीन से अलकायदा के मुजाहिदीन भी हेलिकाप्टर से चल रही गोलियों का जवाब देते हैं।विश्वरुप के इस लम्बे युद्द दृश्य में एक छोटा सा दृश्य आता है, जिसमें जमीन पर बुरके में भागती औरतें अमेरिकी हेलिकाप्टर से चल रही गोलियों की शिकार हो जाती हैं। यह स्वभाविक दृश्य, तब अस्वभाविक दिखने लगता है जब अगले शाट में अमेरिकी सैनिक का चेहरा दिखता है, जिसमें अफसोस से वह गरदन झटकाता दिखता है। लाख मानवीय ही कोई क्यों न हो,युद्ध में हो रही मौत पर कोई सेना कभी अफसोस नहीं करती, वह भी अमेरिका कमल हासन की तमिल फिल्म विश्वरुपम और हिन्दी में विश्वरुप चाहे भले ही किसी का विरोध नहीं करती दिख रही हो, अमेरिका के पक्ष में जरुर में दिखती है। फिल्म में एक संवाद भी है,अमेरिकी बच्चों और महिलाओं को नहीं मारते। अमेरिका के पक्ष में सहानुभूति तब और घनी हो जाती है,जब हिंसाग्रस्त अफगानिस्तान में अमेरिकी महिला डाक्टर आतंकी की पत्नी का भी इलाज करती दिखती है,जो अफगानिस्तानियों का इलाज करते हुए अमेरिकी हमले में मारी भी जाती है। कमल हासन की विश्वरुप में जेम्सबांड की शैली का प्रभाव दिखता है,जहां सब कुछ ब्लैक एंड व्हाइट में है। हिंसक आतंकियों का परमाणु बम से अमेरिका को नष्ट करने की विभत्स मंशा और मुकाबले में सामने  एक अकेला नायक। वाकई इस विश्वरुप में तो यह रहस्य नहीं खुल पाता कि एक भारतीय एजेंट क्यों अमेरिका को बचाने में लगा है,शायद अगले विश्वरुप में खुले,क्योंकि फिल्म कमिंग सून विश्वरुप 2 की घोषणा के साथ खत्म होती है, अगली विश्वरुप की कहानी भारत की ही सरजमीन पर चलेगी कमल हासन इसकी भी झलक देते हैं,जब अंतिम दृश्य में एक आतंकी भारत को निशाना बनाने की धमकी का विडियो रिकार्ड बनाता दिखता है।
तब तक  कमल हासन की इस बात से असहमत होने का कोई कारण नहीं बनता कि इस फिल्म से हिन्दुस्तान के मुस्लिमों के नाराज होने की कोई वजह नहीं। कमल हासन की लगभग सवा दो घंटे लम्बी 'विश्वरुप', अमेरिका और अफगानिस्तान की पृष्ठभूमि में है, हिन्दुस्तान का संदर्भ अवश्य है,लेकिन आश्चर्य जनक रुप से मात्र प्रधानमंत्री की आवाज के रुप में जब वे एक सफल मिशन के लिए अपने एजेंट को बधाई दे रहे होते हैं। अलकायदा की चर्चा जरुर है,लेकिन किसी धर्म विशेष पर कोई टिप्पणी नहीं है। यह जरुर है कि 'विश्वरुप' में अलकायदा के साथ इस्लाम और कुरान के भी संदर्भ हैं। लेकिन जिस धार्मिक कट्टरता की जमीन पर अलकायदा का उदय होता है,वहां इससे बचना कमल हासन के लिए संभव था भी नहीं। जब अलकायदा की चर्चा होगी तो मस्जिद, मदरसे और कुरान से कैसे बचा जा सकता है। वास्तव में जिन मुद्दों पर विश्वरुप विरोध की हकदार थी,तात्कालिक विरोध ने उन महत्वपूर्ण मुद्दों को गौण कर दिया।बगैर कलाकार को अवसर दिए हम अपने निर्णय मानने को बाध्य करते हैं। वास्तव में कला कोई सरकारी सर्कुलर नहीं होता कि उसे वैधानिक रुप से सही होना अनिवार्य हो,कला कलाकार की निजी अभिव्यक्ति होती है,हो सकता है,वह अतिरंजित हो, गलत हो, विमर्श उसे पूर्णता और शुद्धता देते हैं। लेकिन आमतौर पर कला को विमर्श की कसौटी तक पहुचने का हम अवसर ही नहीं देना चाहते।    
विश्वरुप में जो आपत्तिजनक है ,आपत्ति उस पर नहीं होती ,उस पर होती है जो है ही नहीं।फिल्म की शुरुआत ही इस कैप्सन के साथ होती है कि फिल्म में हिंसा के कुछ बेचैन करने वाले दृश्य हैं ,जो अभी तक न्यूजचैनलों में ही दिखाए जाते रहे हैं। वाकई फिल्म में हिंसा के विद्रुपतम रुप हैं। शरीर से कट कर गिरी बांह में पिस्तौल दिखना या क्रेन से लटका कर सार्वजनिक रुप से फांसी देने का लम्बा दृश्य देखना आमतौर पर सहज नहीं होता लेकिन इस फिल्म में ये दृश्य बेचैन नहीं करते।कमल हासन इस हिंसा को जायज ठहराने के लिए ऐसा कथा वितान रचते हैं,जिसके भ्रम में सबकुछ सामान्य और जायज लगने लगता है। फिल्म की शुरुआत एकदम ही कोमल और पारिवारिक वातावरण में होती है। अमेरिका में एक भरतनाट्यम का गुरु विश्वा और ग्रीन कार्ड की महात्वाकांक्षा में उसकी उम्र को नजरअंदाज कर उसके साथ ब्याह कर आयी न्यूक्लियर साइंटिस्ट निरुपमा।ग्रीन कार्ड मिल जाने के बाद निरुपमा अपने बास से जुडने के लिए विश्वा से अलग होना चाहती है। वह एक वैध बहाने की खोज के लिए विश्वा के पीछे जासूस लगा देती है।जासूस जब विश्वा की सच्चाई के पास पहुंचता है तो कहानी पारिवारिक से आतंकवाद और उससे मुकाबले की लडाई में बदल जाती है। बिरजू महाराज के नृत्य से शुरु हुए फिल्म में आगे सिर्फ धमाके और मौत ही दिखते हैं। फिल्म में एक लाइव कामिक सेंस के साथ एक्शन,सस्पेंश और थ्रिल भी है,जो दर्शकों को ठहर कर सांस भरने का भी अवसर नहीं देती। कहानी का ताना बाना कमल हासन ने कुछ ऐसा बुना है कि फिल्म का विचार पक्ष, यदि कोई है भी तो दर्शक कम से कम फिल्म देखते हुए उसे तवज्जो नहीं दे पाते।
 यदि कहें तो विश्वरुप विचार की भूमि पर आतंकियों की हिंसक दुनिया की विद्रुपतम तस्वीर रखती है।जहां धर्म का चित्रण अपने फैनेटिक रुप में है, जो अपने अनुयायिओं को सिर्फ जान लेने और जान देने के लिए तैयार करती है। वाकई यदि धर्म व्यक्ति के विचार और सोच को कुंद कर देती है उससे बडा दुर्भाग्य मानव का नहीं हो सकता।फिल्म में अपने शरीर पर बम बांध कर अमेरिकी टैंक उडाने वाले आतंकी भी दिखते हैं तो ऐसे लोगों के समूह को फिल्मकार खासतौर से रेखांकित करता है जो धर्म के नाम पर रेडियेशन झेल तिल तिल मरने को तैयार है।सिर्फ वर्चस्व के लिए धर्म का यह स्वरुप चिंतित कर सकता था,लेकिन कमल हासन अपनी तेज गति की विश्वरुप में इसका अवसर नहीं देते। कमल हासन अफगानिस्तान से निर्देशित हो रहे आतंकवाद की कई परते खोलने की कोशिश करते हैं, पाकिस्तान सीमा पर सेना के सहयोग से अवैध आवाजाही, अफीम का कारोबार, व्यवसायिको और उद्योगपतियों का आर्थिक सहयोग, वास्तव में बदलते हालात में आतंकवाद को वे एक जिद के रुप में देखते हैं।ऐसी जिद जो विकल्प के बावजूद आतंकवाद के दहशत में जीना पसंद करने के तैयार करती है।आतकी सरगना ओमर अपने बेटे की मौत पर कहता भी है,काश मैं उसे डाक्टर बना पाता ।कमल दिखाते हैं कि अब अफगानिस्तानियों के सामने विकल्प खुले हैं,ओमर का बेटा अंग्रेजी पढ रहा है, पूछने पर कहता है कि मैं डाक्टर बनना चाहता हूं,लेकिन ओमर उसे जेहादी बनाने की कोशिश में है,क्यों.....सिर्फ धर्म।क्या कोई धर्म वाकई इतना क्र्रूर हो सकता है, या धर्म का यह विद्रुप रुप हमने तैयार किया है।
वही इस्लाम विश्वा को सभ्यता की रक्षा के लिए तैयार करती है और वही इस्लाम सभ्यता को समाप्त करने के लिए प्रेरित कर रही है, विश्वरुप वाकई एक बडी फिल्म है, लेकिन निश्चित रुप से कमल की भी कोशिश बडी बातों से फिल्म को बोझिल करने की नहीं रही,थ्रिल और ऐक्शन की प्रबलता विचार को आने के पहले ही किनारे करते रही।बाकी की कमी विवादों ने पूरी कर दी, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की लडाई में  व्यापक बहस की सारी संभावना ने दम तोड दिया।    

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