मंगलवार, 7 अगस्त 2012

हालीवुड का पाला छूने की होड

टाइम की आवरण कथा से जब भारत के वर्तमान और कथित भावी प्रधानमंत्री का कार्यक्षमता तय हो रही हो तो ,क्या आश्चर्य कि भारतीय फिल्मों  के अभिनेता भी अपनी प्रसिद्धि की उडान में हालीवुड का पंख लगाने की कोशिश करने में जी जान से जुटे दिख रहे हैं। परसिस खंबाटा, कबीर बेदी से लेकर आएशा धारकार, इरफान खान और मल्लिका शेरावत की हालीवुड की यह दौड तो समझ में आती है कि काम की तलाश में लोग चांद पर जा सकते हैं तो हालीवुड क्यों नहीं । लेकिन चिंता तब होती है  जब हिन्दी सिनेमा से सब  कुछ हासिल कर चुके अभिनेता भी हालीवुड की दर पर किसी स्ट्रगलर की तरह ठोकरें खाते दिखते हैं। आखिर हालीवुड के प्रति यह तडप क्यों। दुनिया भर में अमिताभ बच्चन भारतीय सिनेमा के प्रतीक के रुप में स्वाकार्य रहे हैं,शायद इसीलिए जब भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान देने के उद्देश्य से आइफा की शुरुआत हुई तो उसके ब्रांड अम्बेस्डर के रुप में अमिताभ बच्चन का ही चुनाव किया गया। लेकिन अभी तक हिन्दी सिनेमा के बालीवुड संबोधन पर आपत्ति करने और हिन्दी सिनेमा के रुप में  स्वतंत्र पहचान की वकालत करने वाले अमिताभ बच्चन भी जब हालीवुड के प्रभाव से  आतंकित होते दिखते हैं तो सहज ही समझा जा सकता है, अंधेरा कितना घना है। उम्र और कैरियर के इस पडाव पर अमिताभ बच्चन वार्नर ब्रदर के बैनर तले बन रही बेज लुरमेन की फिल्म 'दि ग्रेट गेट्सबाय' से हालीवुड में कदम रखेंगे। रोमांटिक पटकथा की इस फिल्म में अमिताभ मेयर क़ा रोल निभाएंगे। फिल्म के अभिनेता टाइटेनिक फिल्म के हीरो लियोनार्डो डि केप्रियो हैं और हीरोइन स्कॉटिश-आस्ट्रेलियाई हीरोइन इस्ला फिशर हैं। कहा जा रहा है अमिताभ इस फिल्म में कुछ सेकेंड के लिए दिखेंगे। क्या यह माना जा सकता है कि पहचान की भूख ने उन्हें इस निर्णय को बाध्य किया होगा।
वास्तव में आर्थिक उदारीकरण कं साथ आए ग्लोबल विलेज की परिकल्पना ने भारतीय मानस को इस कदर कंडीशंड कर दिया कि हमें अपने ही बारे में दी गई जानकारी पर तब तक विश्वास नहीं होता जब तक वह पश्चिम के दरवाजे से नहीं आए। पीपली लाइव तब अचानक महत्वपूर्ण हो जाती है जब वह बर्लिन होकर आती है। गैंग्स आफ वासेपुर की कलात्मकता ढूंढने हम शीर्षासन तक को तैयार हो जाते हैं इसलिए कि वह वाया कांस हम तक पहुंचती है। यह हमारे पश्चिम प्रेम की इंतहा ही है कि हरेक वर्ष यह जानते हुए भी कि आस्कर से हम कितने दूर हैं, जनवरी से ही स्यापा शुरु हो जाता है। यह अमिताभ बच्चन ही थे, जिन्होंने भारतीय सिनेमा के अलग पहचान की वकालत करते हुए आस्कर को गैरजरुरी बताया था। आज सिनेमा ही नहीं शिक्षा विज्ञान समाज स्वभाव सभी के लिए हमें पश्चम की ओर देखने के लिए बाध्य कर दिया गया है। पश्चिम से प्रमाण पत्र पाकर हमें पूर्णता का बोध होता है।जाहिर है हालीवुड की ओर लपकती कलाकारों के इस नए खेप की तुलना काम की तलाश में हालीवुड जाने वाले कलाकारों की परंपरा से नहीं की जा सकती।
भारत मे सिनेमा बनाना अंग्रजों के सान्निध्य में सीखा। फाल्के सिनेमा सीखने हालीवुड नहीं लंदन ही गए थे। उस दौर में अंग्रेज सरकार हालीवुड के सिनेमा के खिलाफ खडी थी,उसे लगता था जो बाद में सही भी साबित हुआ कि हालीवुड उसकी फिल्मों को खत्म कर देगा। वावजूद इसके भारत ने हालीवुड में 1930 में ही दस्तक दे दी। फिल्म थी एलीफेन्ट ब्वाय,और उसमें महावत की भूमिका निभाई थी साबू दस्तगीर ने। समय समय पर आइ एस जौहर ,परसिस खंबाटा जैसे कलाकारों ने भी हालीवुड में पहचान बनाने की कोशिश की। लेकिन वास्तव में हालीवुड में यदि मुकम्मल तौर पर किसी ने भारतीय पहचान बनायी तो वे थे कबीर बेदी।  कीर बेदी की पहला हालीवुड फिल्म सांदोकन थी, कबीर सांदोकन की केंद्रिय भूमिका में थे। इसमें कबीर बेदी की मदद की उनके लम्बे कद और आकर्षक व्यक्तित्व ने भी। बाद में कबीर ने आक्टोपसी और जेम्सबांड की फिल्म में भी बडी भूमिका निभाई। कबीर के हालीवुड जाने और हालिया होड में एक बडा फर्क है कि कबीर हालीवुड के होकर रह गए थे जबकि आज हालीवुड का पाला छूकर भागने की होड है। कोशिश सिर्फ हालीवुड रिटर्न का तगमा लेने की की जाती है।ताकि बालीवुड में अपनी कीमत बढायी जा सके।इसीलिए आज बगैर किसी शर्त के भारतीय कलाकार हालीवुड फिल्मों में आने की कोशिश में लगे हैं।
शोर था कि इरफान खान स्पाइडरमैन 4 में मुख्य खलनायक बन कर आ रहे हैं ,फिल्म आयी तो पता चला परदे पर कुल जमा 10 मिनट इरफान दिखते हैं। हालांकि द वारियर में इरफान को अच्छी खासी भूमिका मिली थी, वास्तव में हालीवुड भारतीय कलाकारों पर तभी उदार होता है जब भारतीय या एशियाई चेहरे शामिल करना उसकी बाध्यता हो। अनिल कपूर लगातार हालीवुड के दरवाजे खटखटाते रहे तो उन्हें मिशन इंपसाबिल में 15 मिनट की भूमिका मिली। मल्लिका बराक ओबामा से जरुर मिल आयी हो लेकिन अभी तक हालीवुड उस पर पांच दस मिनट की ज्यादा की भूमिका के लिए विश्वास नहीं कर रहा। ऐश्वर्य राय ने ब्राइड एंड प्रिजूडिस’, ‘मिस्ट्रेस ऑफ स्पाइसेज’, ‘प्रोवोक्ड’, ‘द लास्ट लीजनऔर पिंक पैंथर-2’ जैसी फिल्मों में काम किया। लेकिन गौर करें तो इनमें से अधिकांश फिल्में भारतीय मूल के निर्माताओं द्वारा ,भारतीय पृष्ठभूमि पर बनायी गई थी।बानजूद इसके पिंक पैंथर में ऐश की भूमिका काफी छोटी रही ।
हिन्दी फिल्मों में नकारात्मक चरित्रों की मांग घटने के बाद हिन्दी सिनेमा के बैडमैन गुलशन ग्रोवर ने भी हालीवुड की कई फिल्मों में कांम किया,लेकिन यह भी यच है कि आज भी हालीवुड किसी न्यू कमर से ज्यादा उनकी पहचान नहीं मानी जाती। हालीवुड ने ओमपुरी,नसीरुद्दीन शाह,राहुल बोस जैसे कलाकारों को भी अवसर दिए, सईद जाफरी तो कई फिल्मों में आए, लेकिन अपनी जरुरतों पर। न तो ये हालीवुड के हो सके न ही हालीवुड इन्हें अपना सकी। अभिनय और काम के लिए हालीवुड जाने का अर्थ तो समझा जा सकता है।मुश्किल तब होती है जब मात्र अपनी ब्रांडिंग में इजाफा के लिए भारतीय सितारे हालीवुड की दौर लगाते हैं ।  
अभी बिपाशा बसु और अभय देओल की सिंग्युलेरिटी भी रिलीज के लिए तैयार हैं। शबाना आजमी भी एक हॉलीवुड फिल्म में काम कर रही हैं। कैथरीन बिग्लो की जीरो डार्क 30’ में वह ओसामा बिन लादेन की पहली बीवी का किरदार निभा रही हैं। यह फिल्म ओसामा के अंतिम समय की पृष्ठभूमि पर आधारित है। सोनम कूपर  भी  हॉलीवुड की दो फिल्मों 30 मिनट्स ऑर लेस में काम कर रही है। बेन स्टिलर की पिज्जा डिलीवरी ड्राइवर से जुड़ी इस एडवेंचरस कॉमेडी में अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की भरमार है,इसमें सोनम को झूंढ पाना वाकई दिलचस्प होगा। रूबेन फ्लिशर निर्देशित इस फिल्म में मुख्य भूमिकाएं जेसी आइजनबर्ग, डेनी मैकब्राइड, फ्रेड वार्ड, अजीज अंसारी, माइकेल पीना, अमांडा राइट, एलेक्स रश आदि की है। इसके अलावा सोनम हॉलीवुड निर्माता एडुअडरे पोंटी की फिल्म 'डास' भी कर रही हैं।
निश्चय ही भारतीय कलाकारों में हालीवुड का पाला छूने की यह होड थमने वाली नहीं है।क्योंकि हिन्दी सिनेमा कभी हमें चुनौती नहीं दे सकती। सिनेमा का अंतिम लक्ष्य हमें प्रभावित करना है,यदि हालीवुड की ब्रांडिंग से हम प्रभावित होते हैं तो भला बालीवुड पीछे क्यों हटेगी।

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