हमलोग पढते सुनते रहे हैं कि सिनेमा में सभी कला और सभी विज्ञान किसी न
किसी रुप में समाहित हैं।एफटीआईआई से फिल्म पढकर निकले एक मित्र ने कुछ ही दिन
पहले बातचीत में कहा यह आप लोगों का भ्रम है,सिनेमा यदि कुछ है,तो वह है बस
कामर्स,सिनेमा कामर्स से ही शुरु होती है,और कामर्स पर ही खत्म होती है। परिकल्पना
से लोकर दर्शकों के देखने तक के सफर में सिनेमा को हर कदम पर कामर्स की सीढियां
चाहिए। यह बात सुनने में भले ही हमें थोडी असुविधा में डालती हो,लेकिन इस सच से
इन्कार नहीं किया जा सकता कि सिनेमा का इतिहास इसके व्यापार के चर्चा के बगैर पूरा
नहीं होता।दादा साहब फालके ने देश में पहली फीचर फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ अपने घर जेवर बेच कर बना तो ली,चुनौती थी फिल्म को दर्शकों तक पहुंचाने
की,या कहें सिनेमाघर तक दर्शकों को लाने की।3 मई 1913 को मुंबई के कोरोनेशन थिएटर
में फिल्म रिलीज हुई।उन्होंने अखबारों में विज्ञापन दिए,उन्हें उम्मीद थी कि राजा हरिश्चंद्र की कहानी,और फिर देश में बनी पहली फीचर फिल्म, दर्शक
तो कोरोनेशन की टिकट खिडकी पर टूट पडेंगें।लेकिन कहते हैं पहले शो में दर्शकों से
अधिक फिल्म के कलाकारों की संख्या थी।शुरुआती पांच शो में कुल 75 टिकट बिके।तब
दादा साहब को फिल्म की प्रमोशन प्लान करने पडे,जिसमें ‘लाइव ट्रेलर’ भी एक था,मतलब फिल्म के कलाकार खास जगहों पर फिल्म के छोटे छोटे सीन रिक्रिएट करते थे।बाद में जब दर्शक फिल्म देखने पहुंचने लगे और फिल्म हिट
हो गई तो कहते हैं टिकट के कलेक्शन बैलगाडी पर बैंक भेजे जाते थे।1913
और आज 2025… सिनेमा के सामने दर्शकों तक पहुंचने की वह
जद्दोजहद अभी भी जारी है।
इसी जद्दोजहद में सिंगल थिएटर,टूरिंग थिएटर,मल्टीप्लेक्स,ओटीटी और अब
यूट्यूब जैसे विकल्प समय-समय पर सिनेमा के लिए उम्मीद बन कर आते रहे हैं।इसी विकल्प की तलाश में कभी सिनेमा जरुरत से ज्यादा बडी होकर 70
एमएम में फैल जाती है तो कभी मोबाईल के 7 एमएम में सिमट जाती है। कोरोना के बाद से
ही ओटीटी ने भारतीय दर्शकों का सिनेमाघरों से मोहभंग कर दिया था, शुरुआती दौर में
ओटीटी ने भले ही हिंसा और अश्लीलता के साथ अपनी पहचान बनायी,बाद में उसे अहसास
होने लगा कि भारतीय दर्शकों से जुडना है तो संवेदनशील कहानियां ही कहनी
पडेगी।आश्चर्य नहीं कि ‘बंदिश बैंडिट्स’ जैसी फिल्में खासतौर पर
ओटीटी के लिए बनने लगी। वास्तव में डिस्ट्रीब्यूशन ने सिनेमा को दर्शकों तक
पहुंचाने की सहुलियत दी तो सिनेमा को नियंत्रित करने की भी कोशिश की।सिनेमा के लिए
मुश्किल यह होती रही फिल्मकारों का दर्शकों से सीधा सरोकार ही नहीं बन पाता।
फिल्मकारों को पता ही नहीं कि दर्शक क्या पसंद कर रहे,क्या नापसंद।बीच में
डिस्ट्रीब्यूटर होते जो अपनी इच्छा अनिच्छा दर्शकों के नाम पर फिल्मकारों तक
पहुंचाते।सिनेमाघरों के लिए जो काम डिस्ट्रीब्यूटर कर रहे थे, वही काम अब ओटीटी के
प्रबंधक करने लगे,वे फिल्मकारों को डिक्टेट करते कि कैसी और क्या फिल्म चाहिए।फिल्म
बनाना किसी और को,देखना किसी और को,और तय करता कोई तीसरा,जिसे न देखना था,न
बनाना।ऐसे में ‘परफेक्ट फेमिली’ ने यूट्यब को एक नए विकल्प के रुप में स्वीकार किया,जहां फिल्मकार और दर्शक के बीच सीधा कनेक्ट था।
‘परफेक्ट फेमिली’ के साथ फिल्म निर्माण में कदम रख रहे अभिनेता पंकज त्रिपाठी कहते हैं, परफेक्ट फैमिली’ मेरे दिल के बेहद करीब है, सिर्फ इसकी
कहानी की वजह से नहीं, बल्कि इसलिए
भी कि हम इसके लिए जो साहसी वितरण मॉडल अपना रहे हैं, वह बिल्कुल
अलग है। वे कहते हैं, आज दर्शक कहानियों को सीधे
खोजते हैं, और यूट्यूब जैसे
प्लेटफ़ॉर्म लंबे फ़ॉर्मेट वाले
कंटेंट के लिए एक बेहतर जगह बन चुके हैं। अपने पहले प्रोडक्शन को पारंपरिक
फ़ॉर्मेट्स से हटकर एक नए मॉडल में बनाना मेरे लिए ताज़गी भरा भी था और ज़रूरी भी।
पंकज त्रिपाठी जैसे जमीन से जुडे और संवेदनशील अभिनेता जब यह कहते हैं तो नहीं
मानने का कोई कारण नहीं,क्योंकि हिंदी सिनेमा के पास एक पंकज ही हैं जिसने अपने
दर्शकों से आज भी सीधा संबंध बना रखा है,वह ऐसा कलाकार है जिसे उसके दर्शक हाथ पकड
कर आज भी बता पाते हैं कि उन्हें क्या देखना पसंद है। पंकज जब अपने प्रोडक्शन के
लिए यूट्यूब का विकल्प चुनते हैं तो यह विकल्प 70 एमएम बरक्स 7 एमएम का भी होता
है। वास्तव में यह सिर्फ कामर्स का मामला नहीं,सिनेमा का अपने तमाम तय व्याकरणों
से मुक्त होने की कोशिश के रुप में भी इसे देखा जाना चाहिए।
पंकज त्रिपाठी की ‘परफेक्ट
फेमिली’ हिंदी की
पहली फिल्म मानी जा सकती है जो सीधे यूट्यूब पर रिलीज की गई।8 एपीसोड में बनी इस
फिल्म के पहले 3 एपीसोड यूट्यूब पर निशुल्क हैं,जबकि आगे के 5 एपीसोड के लिए 59
रुपए में सदस्यता लेने की जरुरत पडेगी। सिनेमाघरों में टिकट दर जबकि न्यूनतम 200
हो गए हैं,ऐसे में पूरे परिवार केलिए 59 रुपए में फिल्म देखना वाकई बेहतर विकल्प हो
सकता है।पंकज के इस निर्माण और वितरण में उनके पुराने मित्र फिल्म निर्माता अजय
राय की कंपनी ‘जार पिक्चर्स’ सहयोगी बनी है।अजय
राय कहते हैं, जार पिक्चर्स में हम हमेशा
कहानी कहने की संभावनाओं का विस्तार करने में विश्वास रखते हैं, सिर्फ रूप में
नहीं, बल्कि इस बात
में भी कि कहानियाँ लोगों तक कैसे पहुँचती हैं। यूट्यूब का पे मॉडल भारतीय
क्रिएटर्स के लिए एक बिल्कुल नया क्षितिज खोलता है। इतनी मजबूत कास्ट और पंकज के
पहली बार प्रोडक्शन में कदम रखने के साथ,
‘परफेक्ट फैमिली’ इस नए क्षेत्र को परिभाषित करने के लिए
सही प्रोजेक्ट लगा। कितना बेहतर है कि बगैर किसी इंतजार के दुनिया भर के दर्शक इसे
एक साथ देख सकते हैं।
हालांकि यह भी सच है कि वितरण के इस ‘ट्रांजेक्शनल वीडियो
ऑन डिमांड’ (टीवीओडी)
माडल पर लंबे समय से प्रयोग हो रहे हैं। बिहार में नीतिन चंद्रा और नीतू चंद्रा
भाई बहन की क्रिएटिव जोडी ने भोजपुरी,मैथिली में अलग नजरिए से फिल्म बनाने की
शुरुआत की,तो राष्ट्रीय पुरस्कार और अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में भागीदारी
अवश्य मिली,थिएटर नहीं मिले तो उन्होंने ‘बेजोड’ के नाम से एक
प्लेटफार्म लांच कर ‘पे पर व्यू’ के माडल पर अपनी
देसवा,मिथिला मखान,जैक्शन हाल्ट
जैसी फिल्मों के साथ भोजपुरी मैथिली में शंकर महादेवन,शारदा सिन्हा जैसे कलाकारों
के साथ खासतौर पर तैयार गीत भी डाले।लगभग पांच साल पहले इस माडल से उन्होंने क्या
हासिल किया यह तो पता नहीं,लेकिन आज टीवीओडी इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में छोटा ही सही लेकिन महत्वपूर्ण भागीदारी के लिए तैयार
है। यह निश्चित रूप से एक बढ़ता हुआ सेगमेंट है,जो फिल्मकारों को आकर्षित कर रहा
है। भारत में 600 मिलियन से अधिक उपयोगकर्ताओं के साथ यूट्यूब एक विशाल समुदाय के
साथ जुडने का सीधा अवसर प्रदान कर रहा है,खास बात यह कि उपयोगकर्ता और निर्माता के
बीच यहां कोई संपादक नहीं। कह सकते हैं यूट्यूब ने कंटेंट निर्माण और वितरण दोनों को
लोकतांत्रिक बना दिया है। यदि इन उपयोगकर्ताओं का एक छोटा प्रतिशत भी भुगतान के लिए
उत्साहित होता है, तो भुगतान की
राशि के बडी होने के प्रति आश्वस्त हुआ जा सकता है।
हाल ही में आमिर खान ने भी अपनी चर्चित फिल्म ‘सितारे जमीन
पर’ को सिनेमा
घरों के बाद सीधे यूट्यूब पर डाल कर इस प्लेटफार्म की संभावनाओं को रेखांकित किया।आमिर
खान समय से आगे चलने वाले कैलकुलेटेड व्यक्ति माने जाते हैं।20 जून को उनकी फिल्म
बेहतर कलेक्शन के साथ सिनेमाघरों मे रिलीज हुई,लेकिन किसी ओटीटी पर देने के बजाय
उन्होंने 1 अगस्त को 100 रुपए पे पर व्यू माडल पर इसे यूट्यूब पर डाल दिया,मतलब जब
भी आप यह फिल्म देखना चाहेंगे 100 रुपए खर्च कर देख सकते हैं।मतलब आमिर खान को
अपनी फिल्म पर भरोसा था कि उसे दर्शकों के लिए किसी ओटीटी के बंधे बंधाए
सब्सक्राइबर की जरुरत नहीं,दर्शक सीधे उनकी फिल्म के लिए भुगतान कर फिल्म देखना
चाहेंगे।आमिर खान ने कहा भी, मुझे ओटीटी से 125
करोड़ नहीं चाहिए, मुझे अपने
दर्शकों से 100 रुपये चाहिए। वास्तव में आमिर खान को यह हौसला 2025 की एक मीडिया
रिपोर्ट से मिली होगी जिसके अनुसार, भारतीय दर्शक
अब एकमुश्त कंटेंट के लिए भुगतान करने के प्रति अधिक इच्छुक हो रहे हैं, और 2024 में टीवीओडी राजस्व 1300 करोड़
रुपये तक पहुंच गया। जिसके अगले कुछ वर्षों में कई गुणा बढने का अनुमान किया जा
रहा है।
उम्मीद की जा सकती है टीवीओडी का बढता बाजार ‘परफेक्ट
फेमिली’ की तरह
भारतीय दर्शकों की पारिवारिक संवेदना से जुडें और भी कंटेंट के लिए इंडस्ट्री की
हौसला आफजाई करेगा। निर्देशक सचिन
पाठक की परफेक्ट फैमिली में एक आम पारिवारिक कथा प्रस्तुत करने की ईमानदारी दिखती
है।आमतौर पर परिवार में या तो षडयंत्र दिखते हैं,या फिर अतिशय त्याग और टूटे
रिश्ते और अनकहे मनमुटाव की कथा कहती है,ये ऐसे लोग हैं जिन्हें परिवार चाहिए
भी,नहीं भी।इस बीच पिसती अति संवेदनशील छोटी बच्ची दानी इस परिवार के साथ हमें
अपने रिश्तों को भी समझने केलिए तैयार करती है। फिल्म मेंटलहेल्थ जैसी संवेदनशील
मुद्दों पर भी बातचीत के लिए तैयार करती है।उल्लेखनीय है कि यूट्यूब के लिए बनने
के बावजूद परफेक्ट फेमिली के निर्माण में कहीं समझौता नहीं किया गया है,चाहे
लोकप्रिय बेहतर अभिनेताओं के उपस्थिति की बात हो या तकनीक की।
वास्तव में यूट्यूब
ने कंटेंट में एक अद्भुत जनतंत्र लाया है।जनता की पसंद
यूट्यूब के कंटेंट की पहली और एकमात्र शर्त है। आमतौर पर इंटरटेनमेंट प्रोडक्शन ऊपर
से तैयार होकर नीचे दर्शकों तक आता है,यूट्यूब ने निर्माण और उपभोग ऊपर से नीचे के
बजाय नीचे से ऊपर की दिशा में शिफ्ट हो रहा है।जाहिर है आनेवाले दिनों में दर्शकों
की रुचि सक्रीन पर और भी मुखर होकर दिखेगी।पंकज त्रिपाठी की इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री
को विषय ही नहीं,कामर्स के स्तर पर भी जडता से मुक्त करने की पहल के लिए सराहना की
जानी चाहिए।
