सिनेमा
को कलाओं की कला और विज्ञानों का विज्ञान कहा गया है।लेकिन यहां यह नजरअंदाज कर
दिया जाता रहा कि वास्तव में सिनेमा गणित है,जिसका ख्याल इसकी शुरुआती दिनों से ही
रखा जाने लगा था।आखिर जब 10 करोड की बनी फिल्म के प्रचार प्रसार पर 15 करोड का बजट
हो,तो इसमें कौन सी कला,कौन सा विज्ञान। इस गणित की अभिव्यक्ति कभी सिल्वर
जुबली,गोल्डन जुबली में अभिव्यक्त होती तो ,कभी वीकएंड कलेक्शन में ।कभी म्यूजिक
राइट्स के रुप में तो कभी डिजीटल राइट्स के रुप में।कुल मिला कर मुद्दा यह कि
फिल्म बनी कितने में और कमाई कितनी की।मतलब शुरुआत गणित से और अंत गणित से।जाहिर
है 100 वर्षों से अधिक की सफल यात्रा के बाद आज सिनेमा यदि विश्व के नामचीन चर्चित
गणितज्ञों की शरण में अपने को सुरक्षित करने की कोशिश कर रही है तो यह अस्वभाविक
नहीं।
पटना
के गणितज्ञ आनंद कुमार पर ऋतिक रोशन अभिनीत ‘सुपर 30’ रिलीज के लिए तैयार है। समकालीनता में
कहानी ढूंढने वाले प्रकाश झा बिहार के ही गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह पर फिल्म
बनाने को तैयार हैं।डर्टी गर्ल विद्या बालन गणितज्ञ ‘शकुंतला
देवी’ को परदे पर साकार करने को तैयार है। रामानुजन पर
अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई फिल्में आ चुकी हैं।हालिवुड की बात करें तो नोबल से
सम्मानित गणितज्ञ जान नैस के जीवन पर ‘ए ब्यूटीफुल माइंड’ जैसी अविस्मरणीय फिल्म
बनी,जिसे2002 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म के आस्कर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। स्टीफन हाकिंस के जीवन पर पर 1991 में ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री आफ टाइम’ एरोल मारिस के निर्देशन
में, फिर 2014 में ‘द थ्योरी आफ एवरीथिंग’ बनी। 2016 में गणितज्ञ कैथरिन जानसन के जीवन पर ‘हिडन
फिगर्स’ बनी।रूसी गणितज्ञ ‘सोफ्या
कोवालसक्या’ के जीवन पर चार फिल्मों की एक महागाथा भी इसी
नाम से बनायी गई। 2015 में निर्देशक मैथ्यू ब्राउन ने महान भारतीय गणितज्ञ
रामानुजन के जीवन पर ‘द मैन हू न्यू इनफिनिटी’ बनायी। हालिवुड में गणितज्ञों पर
या गणित पर केंद्रित इसके अलावे भी ‘अगोरा’ जैसी कई फिल्में बनी ,हिन्दी में या कहें भारत में गणित की कोचिंग पढाने वाले आनंद कुमार को यदि
गणितज्ञ मानें, तो उनकी बायोपिक के रुप में चर्चित ‘सुपर 30’ को इस दिशा में एक नई पहल मान सकते हैं।
‘क्वीन’ और ‘शानदार’ जैसी फिल्म में अपनी रचनात्मकता का दो चरम दिखा चुके विकास बहल के
निर्देशन में बनी ‘सुपर30’ पटना में
अवस्थित विश्व भर में अपनी सफलता के लिए चर्चित एक आइ आइ टी कोचिंग संस्थान सुपर
30 के मालिक आनंद कुमार के जीवन संघर्ष और सफलता पर केंद्रित है।इनकी सफलता और
संघर्षों पर हालांकि डिस्कवरी और बी बी सी सहित कई देशी विदेशीचैनलों के लिए
डाक्यूमेंट्री बन चुके हैं।बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने के लिए इनका नाम गिनीज
बुक आफ लिम्का में भी दर्ज है। मुश्किल यह है कि ‘सुपर30’ को एक गणितज्ञ की बायोपिक मानी जाय या कोचिंग संचालक की। लगातार सफलताओं
के बावजूद इनका कोचिंग भी कभी विवादों से परे नहीं रहा। यह भी कमाल है कि सुपर 30
के बैनर से कोई संस्था अस्तित्व में नहीं है,आनंद कुमार के संस्थान का नाम
रामानुजन स्कूल आफ मैथेमेटिक्स है,जिसमें हजार से भी अधिक बच्चे पढते हैं।उनमें से
30 को चुनकर आइ आइ टी की खास तैय़ारी करायी जाती है, जिसे सुपर 30 का नाम दिया गया
है।बीते वर्ष ही आइ आइ टी के ही चार छात्रों ने बकायदा इन पर एफ आई आर दर्ज कराया
कि ये छात्रों को सफलता के नाम पर धोखा देते हैं।यह भी सच है कि विवादों के कारण
ही इस फिल्म की रिलीज डेट कई बार आगे खिसकायी गई। लगता है ‘सुपर
30’ के रिलीज की अडचनें समाप्त हो गई है और अगले माह यह
दर्शकों की अदालत में होगी।
अपने
निम्न वर्गीय छवि के लिए सुपरिचित आनंद कुमार को रोमन खूबसूरती के प्रतीक ऋतिक
रोशन किस तरह जस्टिफाई करेंगे,देखना दिलचस्प होगा।फिल्म रिलीज के बाद यह तय करना
भी आसान होगा कि इसे हिन्दी में गणितज्ञों पर बनने वाली फिल्म की शुरुआत मानें या
एक व्यवसायी की सफलता की कहानी। सर्वविदित है कि ‘सुपर30’ की
नींव बिहार के आइपीएस अधिकारी और डीजीपी रह चुके अभयानंद ने डाली थी। कुछ विवादों
के कारण आनंद कुमार से अलग होने के बाद अभयानंद ने माइनरिटी के लिए कोचिंग संस्थान
की शुरुआत की,और वहां भी यह सफलता उन्होंने भी दोहरायी।जानकारों के लिए देखना
दिलचस्प होगा कि ‘सुपर30’ की इस गाथा
में अभयानंद कितना और कैसे दिखते हैं।यह भी दिलचस्प है कि ‘सुपर
30’ की अधिकांश शूटिंग बिहार से बाहर ही हुई है।बिहार की
सघनता और यहां की सांस्कृतिक विशेषता किस तरह विकास बहल साकार कर पाते हैं,इस पर
भी बिहारी दर्शकों और आनंद सर के पूर्व छात्रों की नजर भी रहेगी।इस फिल्म का सबसे
उल्लेखनीय पक्ष छात्रों की भूमिका में ‘बिहार बाल भवन किलकारी’ के बच्चों का चयन रहा है।इनमें से कई का चयन प्रकाश झा ने भी अपनी अगली
फिल्म के लिए किया है। दशरथ मांझी सहित कई फिल्मों में काम कर चुके हाशिए पर जीवन
गुजार रहे इन बच्चों की भूमिका विश्वास है फिल्म को एक नया फ्लेवर देगी।
जो
भी हो ‘सुपर30’ के साथ हिन्दी सिनेमा के एक नए जोनर में
प्रवेश से इन्कार नहीं किया जा सकता। हिन्दी में बायोपिक के नाम पर जहां
अभिनेत्रियों,अभिनेताओं और खिलाडियों का चरित्र चित्रण होता रहा है,सुपर 30 को
श्रेय दिया जा सकता है कि इसने फिल्मकारों और बडे अभिनेताओं की हिचक तोडी।कहीं न
कहीं गणित तक के इस सफर में सिनेमा का गणित ही बाधक भी बना रहा।सिनेमा के विषय का
आधार कहीं न कहीं उसकी सफलता से तय होती रही है। यदि सिल्क स्मिता को देखने दर्शक
आने की उम्मीद हो तो डर्टी फिक्चर ही बनेगी,यदि सजायाफ्ता अभिनेता में दिलचस्पी हो
तो संजू भी बन सकती है।हिन्दी में धोनी ही नहीं अजहरुद्दीन की बायोपिक बनी है।ऐसे
में अपनी विद्वता से पहचान बनाने वाले ‘वशिष्ठ नारायण सिंह’ या ‘शकुंतला देवी’ पर फिल्म
की घोषणा इस बात का स्पष्ट संकेत देती है कि दर्शक बदल रहे हैं।
वास्तव
में इसका श्रेय कुछ हद तक मल्टीप्लेक्स को दिया जा सकता है,जहां के छोटी छोटी
क्षमता के थिएटर के लिए हरेक दर्शकों की पसंद का ध्यान रखना आसान हो गया है। मल्टीप्लेक्स
के मजबूत होने से पारिवारिक दर्शकों की थिएटर तक वापसी भी हुई।ये ऐसे दर्शक थे
जिन्हें सेक्स और हिंसा के बजाय कहानी चाहिए।हाल के दिनों में युवाओं के सेक्स और
हिंसा की भूख मिटाने का जिम्मा वेबसिरीज ने उठा लिया,युवा दर्शकों के लिए
मल्टीप्लेक्स में अधिक आकर्षण बच नहीं गया था।ऐसे में मनोरंजन का बडा सा पेट लिए
मल्टीप्लेक्स के लिए नए दर्शक की तलाश आवश्यक थी,जिसे जोडने की कोशिश सुपर30 और शकुंतला
जैसी फिल्म से की जा रही।ये ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनसे आमलोग इमोशनली जुडे हैं।ये
मध्यवर्ग या निम्न मध्यवर्ग से आए हैं,इनकी सफलता में कोई भी अपने सपने की झलक देख
सकता है।
शंकुतला
देवी के पिता सर्कस में काम करते थे। वे भी उनके साथ रस्सी पर चलने का कारनामा और
जादू दिखाया करती थीं। उनके पिता ने शकुंतला को अपनी कई सारी ट्रिक सिखा दी थीं।
एक दिन शकुंतला को ताश के पत्तों का खेल
सिखाते हुए उन्हें लगा कि उनकी बेटी की याद्दाश्त बहुत तेज है। शकुंतला के पिता को
संख्याओं के प्रति उनकी याद्दाश्त पर धीरे-धीरे इतना विश्वास हो गया कि उन्होंने
अपना सर्कस बंद कर दिया और शंकुतला की संख्याओं को याद रखने की क्षमता दिखाने लगे।
18
जून, 1980 को उन्होंने 13 अंकों की संख्याओं का गुणा करके दिखाया था। यह संख्या थी 76,86,36,97,74,870
× 24,65,09,97,45,779। जबकि इस सवाल के बारे में पहले से किसी को
नहीं पता था. इसे इंपीरियल कॉलेज, लंदन के कंप्यूटर
डिपार्टमेंट के स्टूडेंट्स ने तुरंत तैयार किया था। विद्या
बालन इस गणितज्ञ शकुंतला देवी पर बनने जा रही फिल्म में लीड रोल निभाती नजर आएंगी।
शकुंतला देवी को उनकी अविश्वसनीय रूप से तेज गणना करने की क्षमता की वजह से‘मानव कंप्यूटर' भी
कहा जाता था,हालांकि उन्हें कभी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली, लेकिन उनकी प्रतिभा ने उन्हें 1982 के ‘द गिनेज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में भी जगह दिलायी।
'द शकुंतला देवी'
फिल्म को अमेजॉन प्राइम की ओरिजिनल 'फोर मोर
शॉट्स प्लीज' के डायरेक्टर अनु मेनन बना रही हैं। इसकी कहानी
अनु मेनन और नयनिका महतानी ने लिखी है और संवाद इशिता मोइत्रा ने लिखे हैं। फिल्म
के 2020 के इन्हीं महीनों में रिलीज किए जाने की उम्मीद है।
इसी तरह डा.वशिष्ठ नारायण
सिंह का जन्म भी भोजपुर जिले के अति सामान्य परिवार में हुआ था।नेतरहाट आवासीय
विद्यालय से 1962 में मैट्रिक की परीक्षा में राज्य में टाप कर पटना साइंस में
दाखिला लिया।वहां इनकी प्रतिभा को देखते हुए दो वर्षों में ही स्नातक की डिग्री मिल
गई।कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इन्होंने शोध कर डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। इन्हें
अमेरिका के चर्चित अपोलो मिशन में भी काम करने का मौका मिला।
इन्होंने आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी। कहा जाता है कि नासा में
अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए
तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था।लेकिन कुछ ही समय के
बाद ये भारत लौट आए।लेकिन देश लौटने के कुछ ही दिनों बाद ये मानसिक रोग से ग्रसित
हो गए। डा.सिंह अभी भी उसी अवस्था में अपने गांव में रह रहे हैं। अब प्रकाश झा के निर्देशन में उनकी बायोपिक बनाने की घोषणा की गई है।.
फिलहाल इसकी कास्टिंग पर काम हो रहा हैं ।
यह
शुरुआत मान सकते हैं गणितज्ञों के प्रति सिनेमा की यह सहजता उम्मीद देती है कि आने
वाले दिनों में हम प्रेमचंद,परसाई और अज्ञेय पर भी फीचर फिल्म देख सकते
हैं।कहानियां तो इनके जीवन में भी कम नहीं
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